निर्जला एकादशी, जिसे ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार एक विशेष और कठिन व्रत है, यह व्रत विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है जो अन्य एकादशियों में उपवास नहीं रख पाते, इस दिन का व्रत सभी एकादशियों के पुण्य के समान माना जाता है ।
जानते हैं आचार्य राजेश कुमार शर्मा से निर्जला एकादशी व्रत एवं परायण कब होगा
व्रत तिथि और समय
एकादशी तिथि प्रारंभ- 5 जून 2025, गुरुवार को रात्रि 2:18 बजे
एकादशी तिथि समाप्ति- 6 जून 2025, शुक्रवार को रात्रि 4:49 तक
परायण (व्रत खोलने का समय)-
7 जून, शनिवार को दोपहर 1:44 बजे से शाम 4:31 बजे तक
पूजा विधि- भगवान विष्णु की मूर्ति का स्नान कराकर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं, तुलसी के पत्ते, चंदन, धूप, दीप और फूल अर्पित करें।
मंत्र जाप-
“ओम नमो भगवते वासुदेवाय”
त्याज्य- पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करें।
व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत विशेष रूप से पुण्य दायक माना जाता है। यह व्रत उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो अन्य एकादशियों में उपवास नहीं रख पाते। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का उत्तम साधन है।
दान का महत्व
व्रत के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन जल, अन्न, वस्त्र, छाता आदि का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। दान से न केवल भौतिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक उन्नति भी होती है।
राजेश कुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य